Disclaimer: यह कहानी केवल मनोरंजन के लिए लिखी गई है। लेखक या प्रकाशक इसमें लिखी किसी भी बात के सत्यापन की पुष्टि नहीं करते।
इन्सान को देखने के लिए आंखें मिली है। पर फिर भी कुछ चीजों को देखना इन्सान के बस की बात नहीं होती। कुदरत की वह रचनाएं खुद के होने का एहसास करवाने की ताकत रखती है। वह चाहें तो एहसास करवा सकती है और ना चाहे तो कोई उन्हें महसूस भी नहीं कर सकता। जैसे हम हवा को सिर्फ महसूस कर सकते हैं और उतना ही अधिक मात्रा में महसूस कर सकते हैं जितना उसका वेग होता है उसी तरह इस दुनिया में कुछ अमानवीय रचनाएं भी उपस्थित होती हैं। कुछ लोग इन्हें भूत कहते हैं, कोई प्रेत तो कोई दानव। बहुत से लोग इनके अस्तित्व को नकारते भी हैं। खैर जो भी हो, आनंद लीजिए इस कहानी का!
“पिताजी, क्या मैं अपने दोस्तों के साथ इस वैकेशन में घूमने के लिए जा सकता हूं?” आरव ने अपने पापा से पूछा।
“पर इस छुट्टियों में तो मैं तुम्हें म्यूज़िक की क्लासेज के लिए भेजना चाहता था।” उसके पापा बोले।
“ओके पिताजी।” बोलकर वह मुंह लटकाकर अपने कमरे की तरफ जाने लगा।
आरव एक बिल्कुल सीधा साधा और जरूरत से कहीं ज्यादा अनुशासित बच्चा है। उमर 18 वर्ष, अभी अभी स्कूल की पढ़ाई खत्म की है। आरव के पिताजी हमेशा आरव के सीधा और भोला होने की वजह से परेशान रहते हैं। आरव अपने माता पिता की इकलौती संतान है, इसलिए उसके मम्मी पापा उसके भविष्य को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं। उन्हें हमेशा यह डर सताता रहता है कि आरव को अपनी जिंदगी में बहुत बड़ी परेशानियों से ना गुजरना पड़े क्यूंकि इस दुनिया में हर कोई किसी भी व्यक्ति के भोलेपन का फायदा उठाने के लिए हमेशा तैयार रहता है।
“क्या आप भी, हमेशा बच्चे को परेशान करते रहते हैं।” आरव की मां आकर बोली।
“अब भला मैंने क्या किया?” आरव के पापा बोले।
“हां, आप तो कुछ करते ही कहां हैं?”
“क्या हुआ भाग्यवान, क्यूं भड़क रही हो।”
“जब बच्चे का मन है घूमने जाने का, तो क्यूं उसको रोक रहे हो। और ऊपर से क्या पड़ा है म्यूज़िक क्लास में। हां, बताओ जरा मुझे भी।”
“इतनी सी बात तो वह खुद भी मुझसे आकर बोल सकता है ना कि उसको म्यूज़िक क्लास में नहीं जाना।”
“क्यूं उसके पीछे पड़े रहते हो।”
“इधर आओ, आरव बेटा।” उसके पापा ने उसे बुलाया।
“जी पिताजी।” आरव ने जवाब दिया।
“क्या तुम्हारा म्यूज़िक क्लासेज में जाने का मन नहीं है?”
“नहीं” बोलकर मुंह लटकाकर खड़ा हो गया।
“अरे, इसमें इतना मुंह लटकाने वाली कौनसी बात थी? देखो आरव, तुम बहुत ज्यादा सीधे हो, तुम्हें जीने के लिए थोड़ा चतुर बनना होगा। तुम्हें जवाब देना सीखना होगा। क्या तुम समझ रहे हो?”
“जी पिताजी।”
“अच्छा ये बताओ घूमने के लिए कौन कौन जा रहे हो?”
“मैं, यश और सागर।”
“बहुत अच्छे, कब निकलने का प्लान किया है?”
“तीन दिन बाद।”
“कहां घूमने का विचार है?”
“अभी तक डिसाइड नहीं हुआ है।”
“ओके, जब डिसाइड हो तब बताना।”
“जी, तो मैं आपकी तरफ से पर्मिशन समझूं?”
“हां, फुल एंड फाइनल पर्मिशन।”
“थैंक यू सो मच पिताजी।” बोलकर वह अपने कमरे की तरफ चला गया।
“आप जानबूझकर उसको म्यूज़िक क्लास का बोल रहे थे ना!” आरव की मम्मी ने उसके पापा से पूछा।
“नहीं तो, कुछ भी सोचती रहती हो।” उसके पापा ने जवाब दिया।
“हां, मुझे मत बनाने की कोशिश करो।” उसकी मम्मी बोली।
“तो और क्या करूं। मैं बस इतना चाहता था कि वो मेरी बात का विरोध करे। मुझसे जिद्द करे जाने की। पर पता नहीं क्या भूत सवार है उसके सिर पर।” उसके पापा बोले।
“मैं आपका दुख समझ सकती हूं। उम्मीद है जल्दी ही वो नॉर्मल हो जाएगा।” उसकी मां बोली।
उधर, आरव ने अपने दोस्तों को फोन मिलाया और बोला, “मेरा चलना तो फाइनल हो गया है। तुम दोनों की क्या रिपोर्ट है?”
“पता नहीं मेरे पापा हां बोलेंगे भी या नहीं।” सागर बोला।
“कोई बात नहीं अगर अपने दोनों का फाइनल नहीं हुआ तो आरव अकेला चला जाएगा, क्यूं आरव।” यश बोला।
“तुम्हें हमेशा मजाक ही सुझती है क्या? जल्दी से पर्मिशन ले चलने की।” आरव बोला।
“सॉरी, चल मैं रखता हूं। पापा आ गए।” यश बोला।
“सागर, तुम टेंशन मत लो और बेफिक्र होकर अपने पापा से बात करो, वो जरूर तुमको पर्मिशन दे देंगे।” आरव बोला।
“हां मैं ट्राई करता हूं पापा से बात करने की।” सागर बोला।
“अच्छा ठीक है तो बाय, फिर मिलते हैं।” आरव बोला।
“हां बाय।” सागर ने जवाब दिया और फोन रख दिया।
कहानी जारी रहेगी…
आपने पढ़ा कि आरव को अपने दोस्तों के साथ घूमने जाने की पर्मिशन मिल चुकी है। पर क्या उसके दोस्तों को भी पर्मिशन मिल पाएगी। या फिर कुछ और ही “रहस्य” लेकर आएगी ये कहानी।
जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले पार्ट का।
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