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आरव के घर में कुछ अजीब सा हो रहा था जो कि बिल्कुल ही अमानवीय लग रहा था। आरव पूरी तरह से घबराकर एक कोने में सिमटकर बैठ गया।
अब आगे:
अचानक उसे अपने पास में कुछ महसूस होता है। बड़ी ही हिम्मत जुटानी पड़ी उसे यह देखने के लिए कि उसके पास क्या पड़ा है। देखने पर उसे कुछ राहत सी हुई कि यह लोहे की रॉड है। उसने रॉड को उठाया और जल्दी से एक कांच की खिड़की की तरफ भागा। खिड़की के पास जाते ही खिड़की पर रॉड को दे मारा। लिहाजा खिड़की टूट गई। खिड़की का टूटना हुआ कि उसने एक सेकंड भी नहीं लगाया बाहर निकलने में। वह घर से बाहर निकलते ही तुरन्त घर से काफी दूर हट गया। उसने घर में सब तरफ देखा, अब घर में कोई आग भी नहीं लगी हुई थी ना ही कुछ अजीब महसूस हुआ। वह थोड़ा रिलेक्स हुआ पर इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, कोई साया उसके सामने से तेज़ी से गुज़रा। फिर उसे अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ, जैसे ही उसने मुड़कर देखा तो पाया कि वहां कोई भी नहीं था। उसका डर के मारे बुरा हाल होने लगा। फिर उसके कानों में बहुत तेज़ साउंड गूंजने लगा।
उसका फोन रिंग कर रहा था। वह सपना देख रहा था, उसकी नींद टूटी और वह चौंककर खड़ा हुआ। उसे आज से पहले कभी इतना भयानक सपना नहीं आया। वह खुद भी यह सोचकर हैरान था। उसने अपने फोन की तरफ देखा तो कोई अनजान नंबर से फोन था। उसने फोन नहीं उठाया।
“कितना भयानक सपना था! शुक्र है यह सिर्फ सपना ही था। वरना मेरी तो लगभग जान ही निकल चुकी थी।” वह सोचने लगा। इतने में फोन फिर से बजने लगा, फिर वही नंबर था। आरव ने फोन उठाया और बोला, “हैलो”
“आरव! तुम ठीक तो हो” सामने से किसी लड़की की आवाज़ आई।
“हां ठीक हूं मैं।” आरव बोला।
“पर आवाज़ से तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई भूत देख लिया हो।” और वो हंसने लगी।
“हां काफी डरावना सपना था। पर तुमको कैसे पता?” आरव बोला।
“अरे यार! मज़ाक कर रही थी मैं तो। वैसे एक बात बोलूं?”
“हां कहो।”
“दिन में सोओगे तो सपने तो आएंगे ही।”
“छोड़ो वो सब! मैनें तुम्हें पहचाना नहीं, कौन हो तुम?”
“अरे क्या यार! मुझे नहीं पहचाना? मैं रूही, तुम्हारी दोस्त।”
“ओह रूही! पर मैनें तुमसे कब कहा कि तुम मेरी दोस्त हो? अपने सिर्फ क्लासमेट्स हैं, राइट?”
“पर मैं तो तुम्हें अपना दोस्त मानती हूं ना!”
“छोड़ो ये सब बात, मुझे ये बताओ कि क्या मैं तुम्हारे साथ ट्रिप पर चल सकती हूं?”
“नहीं, मैंने पहले भी तो कहा था।”
“पर क्यूं?”
“हम तीन लड़के जा रहे हैं और तुम अकेली लड़की हमारे साथ चलोगी! बाकी छोड़ो हम हमारे मम्मी पापा को कैसे बोलेंगे कि हमारे साथ कोई लड़की भी जा रही है।”
“उसकी टेंशन तुम क्यों के रहे हो? तुम्हें किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें शहर से बाहर मिलूंगी।”
“क्या तुम्हें अंदाजा भी है कि हम कहां जा रहे हैं?”
“हां, अब तुमने लोकेशन ही इतनी अच्छी चुनी है कि क्या बताऊं मेरा भी मन होने लगा जाने के लिए।”
“तुम्हें पता है जयपुर से गोवा कितनी दूर है?”
“नहीं पर मुझे क्या करना है उस से!”
“2 दिन लगेंगे अपने को वहां पहुंचते, कर पाओगी इतना सफ़र?”
“हां ज़रूर। तुम मेरी फिक्र मत करो।”
“ठीक है तो फिर। मैं तुमको यश और सागर से पूछ के बताता हूं।”
“उनको कोई प्रॉब्लम नहीं है मेरे आने से।”
“ओके, तैयार रहना फिर। कब निकलना है ये मैं तुम्हें मैसेज कर दूंगा।”
“थैंक यू सो मच, आरव!”
इतने में आरव ने फोन कट कर दिया और कमरे से बाहर आकर देखा कि उस खिड़की का कांच टूटा हुआ था जो उसने सपने में तोड़ी थी और उसकी मां कांच उठा रही थी। उसके लिए यह काफी हैरान कर देने वाला दृश्य हो चुका था। सपने की हर एक बात उसके दिमाग में फिर से ताज़ा हो गई।
“अरे आरव! उठ गया तू? आज तो दिन में ही सो गया था।” उसकी मां उसे देखते ही बोली।
“हां, नींद आ गई थी। ये कांच कैसे टूटा?” आरव ने पूछा।
“पड़ोस में बच्चे खेल रहे हैं, उनकी बॉल आकर लगी। बहुत शरारत करते हैं ये बच्चे भी।”
आरव का दिमाग एक तरफ तो ये कह रहा था कि यह सिर्फ संयोग है तो दूसरी तरफ इस बात को भूलने से भी इंकार कर रहा था।
उधर, सागर के दिमाग में बस यही घूम रहा था कि वह अपने पापा से कैसे पर्मिशन ले। तभी उसके पापा उसके पास आए और बोले, “बेटा तुम अपनी मम्मी के साथ नानी घर चले जाओगे क्या? तुम्हारे नाना जी की तबियत थोड़ी खराब है और मुझे थोड़ा काम है तो मैं जा नहीं सकता।”
कहानी जारी रहेगी…
दोस्तों क्या लगता है सागर को पर्मिशन मिल पाएगी? क्या ये सब गोवा जा पाएंगे? या कुछ और ही “रहस्य” सामने लेकर आएगी ये कहानी। जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले पार्ट का।
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