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यश जरूरत से कहीं ज्यादा डर गया था। इसलिए सबने मिलकर निश्चय किया कि रात को किसी होटल में रूकें और आगे का सफ़र सुबह तय करें।
अब आगे:
पर नियति को शायद ऐसा कुछ मंजूर नहीं था। कैसे? देखते हैं।
“पर अब यहां कौनसा होटल है?” सागर बोला।
“होगा कोई ना कोई। मैं गूगल पर चेक करता हूं।” आरव बोला और अपना मोबाइल निकालकर उसमें चेक करने लगा। अचानक आरव ने फोन में कुछ देखा और हैरान रह गया। अब आरव के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल पा रहा था। सागर बोला, “आरव! क्या हुआ?”
“यश… यश बिल्कुल सही बोल रहा था।” आरव बोला।
“क्या? कुछ समझ में आए ऐसा बोल।” सागर बोला।
“जिस रस्ते पर अपने चल रहे हैं, मैप में ऐसा कोई रस्ता ही नहीं है। अपनी लोकेशन जंगल के बीच आ रही है।” आरव बोला।
“रुको मैं चेक करता हूं।” बोलकर सागर अपने मोबाइल में चेक करने लगा।
“यार बोल तो तू सही रहा है। पर इसमें इतना घबराने वाला कुछ भी नहीं है। देख, जंगली इलाका है, ऐसी जगह पर नेटवर्क कम काम करता है। हो सकता है जीपीएस सही से काम ना कर रहा हो।” सागर बोला।
इतने में यश बोला, “वापस चल लो। पक्का यह उस बिना सर वाली भूतनी का काम होगा।”
सागर बोला, “अब वापस पीछे जाने का क्या फायदा? आगे हमें कोई ना कोई होटल तो मिल ही जाएगा।”
आरव बोला, “सागर, आर यू स्योर? मुझे नहीं लगता कि ये सब जो हो रहा है सिर्फ संयोग है।”
सागर ने जवाब दिया, “अगर कुछ होना हुआ तो पीछे जाने पर भी हो सकता है। तो क्यूं न आगे जाया जाए।”
रूही बोली, “ये भी ठीक है, तो फिर करो कार स्टार्ट।”
सागर ने कार स्टार्ट की तो वह झटके से लेकर बन्द हो गई। उसने फिर से चाबी घुमाई, पर इस बार तो कार स्टार्ट ही नहीं हुई। सागर ने फिर कोशिश की, कई बार कोशिश करने पर भी कार स्टार्ट नहीं हो रही थी।
“मैनें बोला था तुमको, तुम्हें वहीं कार रोक लेनी चाहिए थी।” यश बोला।
“अरे कार में कुछ प्रॉब्लम हो गई होगी। मैं चेक कर लेता हूं।” सागर बोला।
“यार, यश की बात मुझे ठीक लग रही है। क्यूंकि अभी दो दिन पहले ही कार की सर्विस हुई थी।” आरव बोला।
“बी प्रैक्टिकल यार! लेट मी चेक।” सागर बोला।
“अब तुम लोग झगड़ो मत यार, प्लीज़। सागर, तुम चेक करो कार में क्या प्रॉब्लम है।” रूही बोली।
सागर कार से उतरा और चेक करने लगा। इधर आरव यश और रूही गाड़ी के अंदर बैठे बैठे ही चारों तरफ देखने लगे। रात का घना अंधेरा था। ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जो इनको अभी गाड़ी के शीशे खोलने पर महसूस होनी शुरु हुई थी। जंगल का सन्नाटा जिसमें कुछ जंगली जानवरों की आवाजें बिल्कुल साफ सुनाई दे रही थी। आसमान में हल्के बादल आने शुरू हो चुके थे। कहीं कहीं रुक रुक कर बिजली भी कड़क रही थी। पर माहौल में इतना सन्नाटा था कि किसी के सांस लेने कि आवाज भी साफ साफ सुनाई दे सके। आसमान में चांद बादलों के बीच लुक्का छुपी खेल रहा था।
आस पास का दृश्य अभी के लिए बहुत ज्यादा डरावना तो नहीं था। पर इसको बिल्कुल सामान्य कहना भी कतई सही नहीं होगा। यश का तो केवल इतने में ही बुरा हाल था, आरव केवल अजीब सा महसूस कर रहा था पर डर नाम का कुछ भी उसके चेहरे पर दिखाई नहीं दे रहा था। सागर बिल्कुल बिंदास था और रूही हलकी घबराई हुई सी लग रही थी।
कुछ देर यूं ही गुजरने के बाद आरव बोला, “सागर, गाड़ी ठीक हुई या नहीं?”
पर ये क्या? सामने से कोई जवाब नहीं आया।
आरव ने फिर से पूछा, “सागर, कोई जवाब तो दे।”
यश लगभग रोता हुआ बोला, “कहीं सागर को वो चुड़ैल तो नहीं ले गई!”
आरव बोला, “तू चुप कर, ऐसा कुछ नहीं हुआ होगा। मैं जाकर देखता हूं।”
“रुक मैं भी आता हूं।” यश बोला।
“तू क्या करेगा? तू रहने दे। ऐसे ही खुद भी डरेगा और मुझे भी डराएगा।” आरव बोला।
“मुझे बाथरूम जाना है। तू साथ चल मेरे।” यश बोला।
“चल ठीक है आजा।” आरव बोला और दोनों कार से बाहर आ गए।
आरव ने गाड़ी के आगे की तरफ देखा तो पाया कि आगे सब टूल्स पड़े हैं इंजन में लाइट भी जल रही है पर सागर यहां नहीं है। वह सागर को इधर उधर देखने लगा ही था कि तभी यश बोला, “मेरे साथ रह ना प्लीज़।”
“यहीं कर ले तो। साइड में जाना जरूरी है क्या?” आरव बोला।
आरव रुककर बोला, “अच्छा ठीक है चल।”
दो मिनट बाद जब आरव और यश वापस आए तो आते ही यश कार में बैठ गया और आरव सागर को ढूंढने लगा।
कहानी जारी रहेगी…
दोस्तों क्या लगता है आरव को सागर मिल पाएगा? क्या ये इस जंगल से बाहर निकल पाएंगे? क्या यश का डर खत्म होगा? या फिर कुछ नए ‘रहस्य’ लेकर आएगी ये कहानी। जानने के लिए इंतज़ार कीजिए अगले पार्ट का।
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