अब तक आपने पढ़ा:
घनश्याम के सुसाइड थॉट (विचार) को एक पैकेट ने उसके जहन से निकाल दिया। घनश्याम के मन में एक विचार आया।
अब आगे:
घनश्याम ने अपने जेब से डायरी और पैन निकाला। घनश्याम की आदत थी कि वो जहां भी जाता डायरी पैन साथ में रखता था। उसने एक कागज के टुकड़े पर लिखा, “अगर किसी की कोई कीमती चीज खो गई हो तो इस नंबर पर संपर्क करें।” और उसके नीचे खुद के मोबाइल नंबर लिख दिए। घनश्याम के हाथ में एक धागा (मौली) बांधा हुआ था उसने उसे निकला और उसके सहारे उस कागज को पास के खंभे पर बांध दिया।
वह अब निश्चिंत था कि अगर कोई इस लिफाफे को ढूंढता हुआ आएगा तो उसे फोन कर लेगा। इसके बाद उसने अपने आप में सोचा कि जब तक वह इस लिफाफे को उसके असली मालिक को नहीं दे देता तब तक वह सुसाइड नहीं करेगा क्यूंकि उसे लग रहा था कि कोई इस लिफाफे के खो जाने की वजह से बहुत परेशान हो रहा होगा।
घनश्याम इसके बाद वहीं एकांत में बैठा रहा। उसका बिल्कुल भी मन नहीं था वापस उस भाग दौड़ से भरी जिंदगी में जाने का। वह थक चुका था और उसका मन हार मान चुका था। उसे अकेले रहने में अकल्पनीय सुकून मिल रहा था। इस वक्त उसके मन में किसी प्रकार की कोई चिंता या भय नहीं था। वह एक अलग ही प्रकार के आनंद को महसूस कर रहा था। उसे पता भी नहीं लगा कब रात हो गई।
उसे अचानक याद आया कि उसे घर भी जाना था। उसने उस खंभे की तरफ देखा तो वह कागज वैसे ही बंधा हुआ पड़ा था और इस समय के दौरान कोई भी उस लिफाफे को ढूंढता हुआ नहीं आया था। घनश्याम घर की तरफ रवाना हो गया।
घर में घुसते ही प्रीति ने उसे गले लगा लिया और रोने लगी। उसकी मां और दादी की आंखों में उसने एक अलग ही चमक देखी जैसे मानो किसी छोटे बच्चे को उसका खोया हुआ मनपसंद खिलौना मिल गया हो। उन दोनों के चेहरे से साफ झलक रहा था कि वह अब तक कितने परेशान रहे होंगे।
“क्या हुआ, आप सब इतने भावुक क्यों हो रहे हो?” घनश्याम बोला।
“भैया, ऐसे कोई करता है क्या?” प्रीति बोली।
“क्या किया मैंने?” घनश्याम बोला।
“कहां गायब हो सुबह से? बताकर भी नहीं गए। पता है हम लोग कितने परेशान हो गए थे।” प्रीति बोली।
“सॉरी यार! कुछ काम था तो देर हो गई।” घनश्याम बोला।
“ऐसा कौनसा काम था? जरा बताओ मुझे भी।” प्रीति बोली।
“क्या तू भी बच्चों को तरह इस से लड़ने लग गई। उसने सुबह से कुछ खाया कि नहीं, ये तो पूछ ले कम से कम।” मां बीच में बोली।
“हां पूछो इनको, पता है मां का क्या हाल है सुबह से। मां ने खाना भी नहीं खाया।” प्रीति बोली।
“चुप कर, कुछ भी बोलती है।” मां बोली।
“मां क्या है ये? खाना तो खा लेती कम से कम।” घनश्याम बोला।
“कुछ भी बकवास करती है ये।” मां बोली।
“चल मां खाना खा लेते हैं।” घनश्याम बोला।
इसके बाद घनश्याम ने पूरे परिवार के साथ बैठकर खाना खाया। खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में सोने चला गया। पर उसे नींद कहां आ रही थी। वह तो बस इसी ख्याल में खोया था कि वह कितना गलत करने जा रहा था। उसके कुछ देर घर से बाहर जाने से ही उसके परिवार की क्या हालत हो गई थी और वह तो हमेशा के लिए उनसे दूर होने जा रहा था। उसे पछतावा हो रहा था और उसने प्रण लिया कि वह आगे से कभी भी ऐसा कुछ भी करने की नहीं सोचेगा। इन्हीं खयालों में खोए हुए उसे नींद आ गई।
सुबह उठने के बाद घनश्याम नहा धोकर प्रीति को बताकर रोहन के घर चला गया। रोहन उसे देखते ही बोला, “कल कहां थे पूरा दिन?”
“तुम्हें कैसे पता?” घनश्याम ने पूछा।
“वो प्रीति का फोन आया था, पूछ रही थी तुम मेरे साथ हो क्या!” रोहन बोला।
“अच्छा! यार कल तो बहुत कुछ हो जाता। शुक्र है बच गया।” घनश्याम बोला।
“कैसे? मतलब एक्जैक्टली क्या हुआ? कुछ साफ साफ कहो।” रोहन बोला।
“वो हुआ कुछ यूं कि कल मैं सुसाइड करने गया था पर…” घनश्याम बोलते बोलते रुक गया। घनश्याम ने सोचा अगर उसने रोहन को रुपए मिलने वाली बात बताई तो वो उसे रुपए काम में लेने के लिए कहेगा।
“पर क्या?” रोहन ने पूछा।
“पर ट्रेन टाइम पर नहीं आई और मुझे थोड़ा सोचने का वक्त मिल गया और मैनें सुसाइड करना कैंसल कर दिया।” घनश्याम बोला।
“चलो भगवान का शुक्र है तुम सही सलामत हो।” रोहन बोला।
“हां सो तो है।” घनश्याम बोला।
इसके बाद घनश्याम अपने घर आ गया और फोन उठाकर देखा तो उसमें एक अनजान नंबर से पांच मिस्ड कॉल्स थे।
कहानी जारी रहेगी…
दोस्तों क्या लगता है, घनश्याम उन रुपयों के मालिक को ढूंढ पाएगा? या फिर वो उन रुपयों को घर खर्च में लगा देगा। पर असली मुद्दा तो है उसकी ‘बेरोजगारी’ का। जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले पार्ट का।
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