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घनश्याम की हालत काफी खराब होती जा रही थी। अब उसके पास जमा पूंजी भी खत्म होने को थी और किसी जॉब का अता पता नहीं था।
अब आगे:
घनश्याम की जिंदगी में निराशा का दौर चल रहा था। जब व्यक्ति जरूरत से ज्यादा निराश होता है तो वह अपने मन की चिंता के कारण तनाव में आ जाता है। कुछ ऐसा ही घनश्याम के साथ होने लगा था, वह किसी से ज्यादा कुछ बोलता नहीं था और गुमसुम सा रहने लगा था।
पहले वह हर वक्त प्रीति की टांग खींचने में लगा रहता था और अब वह खुलकर बात भी नहीं करता था। प्रीति को भी एहसास होने लगा कि उसका भाई टेंशन के किस दौर से गुजर रहा है। उसने घनश्याम से इस बारे में बात करने की सोची। रात को जब वह घनश्याम को खाने के लिए कहने गई तब,
“भैया, खाना बन गया है।” प्रीति बोली।
“हां, आता हूं।” घनश्याम बोला।
“क्या बात है भैया, कुछ दिनों से देख रही हूं। काफी परेशान लग रहे हो।” प्रीति बोली।
“नहीं मैं ठीक हूं।” घनश्याम बोला।
“नहीं कुछ तो बात है, प्लीज़ बोलो ना।” प्रीति बोली।
“कहा ना कुछ नहीं है।” घनश्याम चिल्लाया।
“रुपयों की टेंशन है?” प्रीति बोली।
घनश्याम इस पर चुप रहा। प्रीति समझ गई कि यही बात है। वह बोली, “भैया, आप टेंशन मत लो, मैं पढ़ाई छोड़कर सिलाई करने लग जाऊंगी। इस से मेरी पढ़ाई का खर्च भी बचेगा और घर में आमदनी आनी भी चालू हो जाएगी। सब ठीक हो जाएगा।”
“तुझे पढ़ाई छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है, मैं सब मैनेज कर लूंगा।” घनश्याम बोला।
“पर भैया…” प्रीति बोल ही रही थी कि प्रीति की बात को काटते हुए घनश्याम बोला, “पर वर कुछ नहीं, खाना बन गया ना, चल खाना खाते हैं।” और सब खाना खाने लगे।
प्रीति इतनी आसानी से इतनी बड़ी बात नहीं भूल सकती थी। उसके दिमाग में यही चलता जा रहा था। उसने इस बारे में मां से बात करने की सोची।
डिनर के बाद प्रीति ने मां से इस बारे में बात की। मां ने बोला, “मुझे लगता है, घनश्याम को अकेले बिल्कुल भी नहीं रहने देना चाहिए। किस्मत में जो लिखा है वही होना है। पर टेंशन की वजह से वो अपनी तबियत ना बिगाड़ ले।”
“हां पर कैसे? भैया तो किसी की बात तक भी नहीं सुनते।” प्रीति बोली।
“क्यूं ना तुम इस बारे में रोहन से बात करो। रोहन उसका ख्याल अच्छे से रख सकता है।” मां बोली।
“हां मां, सही कहा आपने।” प्रीति बोली।
अगले दिन सुबह प्रीति रोहन के घर गई और उसको सारी बात बताई। पूरी बात सुनने के बाद रोहन बोला, “मुझे पता है कि घनश्याम टेंशन में रहता है, पर इतना ज्यादा! ये मैनें कभी सोचा भी नहीं था। कोई बात नहीं तुम चिंता मत करो, मैं घनश्याम का ख्याल रखूंगा।”
प्रीति ने धन्यवाद कहा और अपने घर चली आई।
कुछ देर बाद रोहन घनश्याम के घर आया और बोला, “घनश्याम है क्या घर पर?”
घनश्याम की मां बोली, “अरे रोहन बेटा, आओ बैठो, मैं चाय बनाकर लाती हूं।”
“नहीं आंटी, मैं अभी पीकर आया हूं।” रोहन बोला।
इतने में घनश्याम भी बाहर आ गया और बोला, “अरे रोहन, आज सुबह सुबह हमारे घर। कहो कैसे आना हुआ?”
“क्यूं आने के लिए कोई वजह चाहिए?” रोहन बोला।
“अरे नहीं यार, कैसी बात कर रहे हो। तुम्हारा अपना ही घर है।” घनश्याम बोला।
“अच्छा मैं सोच रहा था, अपने काफी टाइम से साथ में बाहर नहीं गए। आज कहीं चलें।” रोहन बोला।
“नहीं यार, तुम्हें तो पता ही है ना। हालत तंग है और…” घनश्याम बोला।
बात को बीच में काटते हुए रोहन बोला, “मैनें तुमसे पैसे मांगे? मैं घुमाकर ला रहा हूं।”
“पर…” घनश्याम बोलने लगा इतने में रोहन फिर बोला, “मुझे कुछ नहीं पता तुम मेरे साथ आ रहे हो बस।”
रोहन की जिद्द के सामने घनश्याम की क्या चलती। वो दोनों घर के नजदीक ही किसी तालाब के किनारे चले गए और वहां जाने तक रोहन यही सोच रहा था कि घनश्याम कुछ बोले और बात शुरू हो पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। घनश्याम की चिंता का असर उसके बरताव में साफ दिखाई दे रहा था।
खैर, रोहन ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “और बताओ, क्या चल रहा है आजकल?”
इस पर घनश्याम ने काफी धीमे स्वर में उत्तर दिया, “कुछ नहीं।”
“कुछ तो बोलो, ऐसे चुप रहोगे तो कैसे चलेगा।” रोहन बोला।
घनश्याम इस पर चुप ही रहा। तब रोहन ने बात बदलकर बोला, “देखो, तालाब कितना सुंदर लग रहा है ना।”
घनश्याम ने तालाब की तरफ देखा और बोला, “लग रहा है जैसे मुझे ही बुला रहा हो!”
रोहन बात तो नहीं समझा पर खुश हुआ कम से कम घनश्याम ने चुप्पी तो तोड़ी। रोहन बोला, “अच्छा, कैसे?”
“मन करता है इस तालाब में कूदकर अपनी जान दे दूं।” घनश्याम बोला।
घनश्याम को इतना परेशान देखकर रोहन भी परेशान हो गया।
कहानी जारी रहेगी…
दोस्तों क्या रोहन कुछ कर पाएगा? या प्रीति कुछ आइडिया लेकर आएगी? जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ और इंतजार कीजिए अगले पार्ट का।
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