अब तक आपने पढ़ा:
घनश्याम रोहन के घर गया तब रोहन बच्चों को स्वरोजगार के बारे में पढ़ा रहा था। तब घनश्याम के मन में कई तरह के विचार कूदने लगे।
अब आगे:
घर आने के बाद वह कुछ सोचता हुआ वापस घर से जाने लगा। तभी उसकी मां बोली, “अभी आया और अभी जा रहा है। कम से कम कुछ खाकर तो जा।”
“नहीं मां, अभी मुझे भूख नहीं है, वापस आकर खाता हूं। और तुम याद से खाना खा लेना।” घनश्याम बोला।
यह कहकर घनश्याम घर से निकल गया। घर से निकलकर वह मार्केट की तरफ जा रहा था। उसका चित्त काफी उधेड़बुन में प्रतीत हो रहा था। वह उन पचास हजार रुपयों को, जो कि वास्तव में उसके नहीं थे, इस्तेमाल करने की सोच रहा था। किन्तु उसकी अंतरात्मा इसकी इजाजत उसे नहीं दे रही थी। उसका मन उसे कहने लगा कि वैसे भी वो रुपए उसके पास ऐसे ही पड़े हैं इससे अच्छा तो है कि वह उनका अच्छा इस्तेमाल करे। पर अंतरात्मा नहीं मान रही थी क्यूंकि अगर उसे किसी वक्त पर उन रुपयों का मालिक मिल जाता है तो वह क्या करेगा!
फिर आखिर बहुत मशक्कत करने के बाद उसके मन और अंतरात्मा के बीच इस तरह का समझौता होता है कि जीवन में जब कभी भी उसे उन रुपयों का हकदार मिलेगा तो वह तब तक जितना भी उन रुपयों की मदद से कमा चुका होगा, उसका बीस प्रतिशत और वो पचास हजार रुपए उस व्यक्ति को दे देगा।
घनश्याम ने आखिर बीच का रास्ता निकाल ही लिया। पर अब उसके लिए जरूरी था कि पैसे ऐसी जगह पर लगाए जाए जहां फायदा होने की प्रायिकता अधिक हो। उसे अचानक याद आया कि कुछ दिन पहले उसने एक नोटबुक के लिए 80 रुपए का भुगतान किया था। वह शहर की एक बड़ी स्टेशनरी शॉप पर गया जो होलसेल पर भी सामान बेचा करते हैं। वहां जाकर उसने सभी तरह की नोटबुक्स के और कुछ तरह के स्टेशनरी के सामान के भाव मालूम किये। जिस नोटबुक के लिए उसने 80 रुपए दिए थे वह उसे 62 रुपए की मिल रही थी। और इसी तरह सब सामान अच्छे दाम में मिल रहा था।
उसने पचास हजार में जितना सामान आ सकता था उतना लिखवा दिया और दुकानदार को बीस हजार रूपए एडवांस और अपना पता देकर घर आ गया।
घनश्याम के घर के बाहर एक गैराज थी जिसमें कुछ सामान पड़ा था। घनश्याम के पिता जी की मृत्यु कार एक्सिडेंट में हुई थी। कार की हालत इतनी बुरी हो गई थी कि वो अब घर में रखने लायक रही ही नहीं थी और उसको देखकर घनश्याम की मां भी बार बार रोने लगती। इसलिए घनश्याम ने कार को कबाड़ में दे दिया था और गैराज अब खाली था।
घनश्याम घर में आते ही गैराज की चाबी लेकर घर से बाहर आ गया। रोहन अपने घर की छत पर खड़ा था।
“कहां भाग दौड़ कर रहे हो?” रोहन ने पूछा।
“कहीं नहीं, तुम अभी फ्री हो क्या?” घनश्याम ने पूछा।
“हां, कोई काम था क्या?” रोहन बोला।
“हां, यहां आओ जल्दी।” घनश्याम बोला।
“हां आया।” रोहन बोला।
घनश्याम ने गैराज को खोला। गेट के खुलते ही बहुत सी धूल उड़ी जिससे घनश्याम को खांसी आ गई। इतने में रोहन भी आ गया और बोला, “ओ हो, बहुत गंदगी है यहां तो।”
“हां, काफी टाइम से बंद जो है।” घनश्याम बोला।
“तो अब क्या इरादा है?” रोहन ने पूछा।
“बताऊंगा, पहले मेरी मदद करो इसे साफ करने में।” घनश्याम बोला।
“हां ज़रूर।” रोहन बोला।
काफी देर मेहनत करने के बाद रोहन और घनश्याम ने मिलकर गैराज को साफ किया। दोनों काफी थक चुके थे। रोहन बोला, “चलो ठीक है, मैं चलता हूं। मुझे खाना भी बनाना है।”
“अरे तुम काफी थक गए होगे, आज खाना मेरे घर खा लो।” घनश्याम बोला।
“नहीं इसकी कोई जरूरत नहीं है, मैं बना लूंगा।” रोहन बोला।
“क्या बना लोगे, देखो ठीक से खड़ा तो रहा नहीं जा रहा।” घनश्याम बोला।
“अच्छा ठीक है।” रोहन बोला।
घनश्याम और रोहन दोनों गैराज को लॉक करके घनश्याम के घर के अंदर चले गए और हाथ मुंह धोकर खाना खाने लगे।
खाना परोसते वक्त प्रीति ने घनश्याम से पूछा, “भैया, आज गैराज की सफाई कर रहे थे? क्या बात है! टैक्सी चलाने वाले हो।”
यह सुनकर रोहन की हंसी छूट गई। वह हंसते हुए बोला, “फिर तो मुझे जब भी बाजार जाना होगा, मैं तुम्हें ही लेकर जाऊंगा।”
“अरे नहीं मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाला। और चलाने के लिए टैक्सी है भी कहां?” घनश्याम बोला।
“वो तो किराए पर भी मिल सकती है।” प्रीति बोली।
“मैं नहीं चलाने वाला कोई टैक्सी।” घनश्याम चिढ़ते हुए बोला।
“अच्छा तो फिर ये साफ सफाई किसलिए थी?” रोहन बोला।
“वो तो कल सुबह ही पता लगेगा।” घनश्याम बोला।
इस तरह बातें करते करते सब ने खाना खत्म किया।
कहानी जारी रहेगी…
दोस्तों क्या अब घनश्याम की ‘बेरोजगारी’ दूर हो जाएगी? शायद इतना आसान नहीं होगा। वैसे हो भी सकता है कि यह सब बहुत आसान हो। जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले पार्ट का।
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