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घनश्याम ने स्टेशनरी का काफी सामान ऑर्डर कर दिया। उसके बाद घर आकर रोहन की मदद से गैराज साफ किया और फिर रोहन के साथ मिलकर खाना खाया।
अब आगे:
अगले दिन सुबह एक गाड़ी में घनश्याम का ऑर्डर किया सारा समान आया। घनश्याम और रोहन ने सारा सामान गैराज में रखवाया और पेमेंट करके गाड़ी को भेज दिया। प्रीति भी गैराज में आ गई।
“इतनी सारी नोटबुक्स, पैन, पेंसिल, ड्रॉइंग बुक्स वगेरह! ये सब सामान किसलिए?” प्रीति बोली।
घनश्याम कुछ सोच रहा था तो उसने प्रीति की बात को अनसुना कर दिया।
“कुछ बोलेगा भी या यूं ही बुत्त बनकर खड़ा रहेगा?” रोहन बोला।
“अरे इसके लिए ही तो गैराज साफ की थी कल।” घनश्याम बोला।
“कुछ साफ साफ बताओ, क्या करने वाले हो?” प्रीति बोली।
“दुकान” घनश्याम बोला और कुछ सोचते हुए बोला, “अब इनको रखूं कहां और कैसे?”
“क्या? दुकान!” प्रीति बोली।
“ठीक है! जो भी करने वाला है। करने दो, ज्यादा सवाल मत करो।” रोहन बोला।
“ओके” प्रीति बोली।
“घनश्याम! इन सबको अरेंज करने के लिए मेरे पास एक्स्ट्रा बुक शेल्फ हैं। उनसे काम चल जाएगा शायद।” रोहन बोला।
“नहीं यार, तुम्हें जरूरत होगी उनकी।” घनश्याम बोला।
“अरे नहीं पहले मैं एक लाइब्रेरी बनाने की सोच रहा था, इसलिए बनवाए थे। अब वो मेरे किसी काम के नहीं हैं।” रोहन बोला।
“अच्छा ठीक है, पर उसके तुम्हें पैसे लेने पड़ेंगे।” घनश्याम बोला।
“इसकी क्या जरूरत है।” रोहन बोला।
“है जरूरत!” घनश्याम बोला।
“अच्छा बाबा ठीक है, पर अभी नहीं, जब तुम्हारी हालत कुछ ठीक हो जाए तब दे देना।” रोहन बोला।
उसके बाद घनश्याम और रोहन दोनों मिलकर एक एक करके शेल्फ उठा कर लाए। फिर उन्होंने सब सामान को दुकान में जोड़ा। प्रीति भी इन सब कामों में उनकी मदद कर रही थी। काउंटर की जगह घनश्याम ने एक मेज लगा दिया, क्यूंकि अभी तो वह काउंटर और दूसरा फर्नीचर बनवाने की हालत में नहीं था।
“घनश्याम! लगभग सब हो गया।” रोहन बोला।
“हां, तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया। अगर तुम ना होते तो मुझे नहीं पता मैं ये सब कैसे मैनेज कर पाता।” घनश्याम बोला।
“अरे इसमें शुक्रिया कैसा। वैसे भी आज संडे था। इसलिए मैं फ्री ही था।” रोहन बोला।
“अच्छा आप दोनों थोड़ा आराम करो। तब तक मैं खाना बना लेती हूं।” प्रीति बोली।
“नहीं रहने दो! तुम भी थक गई होगी। आज खाना बाहर से मंगवा लेंगे।” घनश्याम बोला।
“सच्ची?” प्रीति बोली।
“हां” घनश्याम बोला।
घनश्याम ने खाना मंगवाया और रोहन व घनश्याम के परिवार ने मिल कर खाना खाया।
“घनश्याम बेटा! दुकान की ओपनिंग कब कर रहे हो?” मां ने पूछा।
“कल ही।” घनश्याम ने जवाब दिया।
“सुबह दुकान खोलने से पहले मंदिर हो आना।” दादी ने कहा।
“जी दादी!” घनश्याम ने जवाब दिया।
उसके बाद यह दिन तो घनश्याम के लिए उत्सुकता भरा दिन था। वह महीनों बाद इस तरह थोड़ा उत्सुक और खुश दिखाई पड़ रहा था। शायद उसने अपनी बेरोजगारी को दूर करने की तरफ एक कदम बढ़ा लिया इसकी खुशी थी या फिर कुछ नया करने के लिए उत्सुकता। जो भी हो, आज उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी। खैर, दिन निकल गया और रात जो गई। कुछ सोकर तो कुछ खयालों में खोए रहकर घनश्याम की रात गुजरी।
अगले दिन सुबह जल्दी उठकर घनश्याम मंदिर चला गया। आते हुए रोहन को भी प्रसाद देता हुआ घर पर सभी को प्रसाद देकर दुकान पर आ गया।
दुकान खोलने लगा तभी प्रीति आई और बोली, “भैया! पहले नारियल तो फोड़ लो।”
“अब सुबह सुबह नारियल कहां से लाऊं?” घनश्याम बोला।
“मुझे पता था आप भूल जाओगे। इसलिए मैनें कल ही लाकर रख लिया था। ये लो नारियल।” प्रीति नारियल पकड़ाते हुए बोली।
घनश्याम ने नारियल फोड़ा और दुकान खोल ली। इतने में रोहन वहां आ गया और बोला, “बौनी हुई या नहीं?”
“अभी अभी तो दुकान खोली है।” घनश्याम बोला।
“अच्छा तो मुझे एक 10 रुपए का पैन दे दो।” रोहन रुपए पकड़ाते हुए बोला।
घनश्याम ने उसको पैन दिया और बोला, “थैंक यू सो मच।”
“अरे इसमें थैंक्स कैसा? दोस्त की बौनी भी नहीं करवा सकता क्या मैं?” रोहन बोला।
“अच्छा ठीक है। अब नहीं बोलूंगा, बस।” घनश्याम बोला।
घनश्याम की दुकान से आस पास के लोग सामान लेने लगे। इस तरह कुछ दिन बीत गए। पर कुछ खास बिक्री नहीं हो पा रही थी। घनश्याम एक बार फिर से उदास सा हो गया। रोहन ने इस बात पर गौर किया तो उसने पूछा, “भला अब क्या वजह है उदासी की?”
“यार धंधा बिल्कुल ही मंदा है। इसलिए थोड़ा उदास हूं।” घनश्याम ने जवाब दिया।
“कोई बात नहीं, कम से कम बेरोजगारी से तो अच्छा ही है।” रोहन बोला।
“हां सो तो है।” घनश्याम बोला।
घनश्याम और रोहन दोनों को पता था कि रोहन ऐसा सिर्फ दिलासा देने के लिए बोला है। और वह दिलासे के सिवाय कर भी क्या सकता था।
कहानी जारी रहेगी….
दोस्तों क्या लगता है, घनश्याम की दुकान चल पाएगी। या वो फिर से पहले की तरह बेरोजगार ही रह जाएगा। कॉमेंट करके जरूर बताएं और इंतजार कीजिए अगले पार्ट का।
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