एक नया किस्सा कशिश की कहानी से जुड़ चुका था । सच्चाई का सामना करने की हिम्मत अभी तक कशिश मे नहीं थी । आखिर ऐसा भी क्या हुआ कि किसी ने ममा पापा को मारने की कोशिश की थी । और कौन है जिसके कारण ममा आज हमारे साथ नहीं है । एक अलग है सवालों की झड़ी कशिश के मन में चल रही थी । और कोई ऐसा नहीं था जिससे कशिश जाकर सब कुछ पूछ सके ।
पर कशिश के दिमाग और दिल में एक ही सवाल बार बार खटक रहा था ।
अब उसने जो फैंसला किया शायद वो कुछ ऐसा उसके सामने लाने वाला था जो उसकी ज़िन्दगी को नया रुख दे रहा था।
पूरी रात इन सब सवालों से लड़ते लड़ते सुबह हो गई ओर कशिश आफिस के लिए जाने लगी पर जाने से पहले एक बार पापा को देखने गई जो को ट्रॉमा कि कंडीशन मे जुंझ रहे थे । कशिश दिल को संभाल कर उनके पास गई । और अपने हाथ उनके हाथो पर रखे और कहा – सब सही कर दूंगी मैं चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े ।
आफिस पहुंचते ही कशिश काम लग गयी।
ना किसी से बात करना ना कोई जवाब देना सबको लगता था अब शायद वो कशिश की वो खुशी वाली आवाज भी पता नहीं सुन पाएंगे या नहीं ।
इन सब से अलग कशिश के दिमाग में भूचाल चल रहा था । कशिश का फोन रिंग हुआ । जो कि उन्हीं डिप्रार्टमेट के ऑफिसर का कॉल था जिन्होंने इन्वेस्टिगेशन के मिले हुए सबूत कशिश को भेजें थे । कशिश ने केस रिओपन करवाने को लेकर बात की थी जो की कशिश को वहा बुलाया जा रहा था ।
अब कशिश को किसी को भी बिना बताए Australia पहुंचना था पर जाए कैसे । आखिरकार कशिश ने रिचा से सब बताया । और रिचा भी डर रही थी वो समझाने की कोशिश तो कर रही थी पर उसको पता था सब बेकार जाने वाला है ।
पर फिर भी उसने बहुत कोशिश की और आखिर में हार मानकर कशिश को सपोर्ट करने का फैंसला लिया । कशिश ने आफिस के काम का बहाना बनाकर जाने का सोचा पर उसको अकेले जाने देने में रिचा ने मना कर दिया था । इसलिए आखिकार उसने ऋषि को फोन किया और मिलने को कहा । जो कि पूरा दिन सोचने के बाद किया जाने वाला फैंसला था । ऋषि बहुत खुश था उसको लगा कि मानो उसके पर निकल आए हो उसको ना जाने इतने टाइम बाद खुशी महुसुस हो रही थी कि वो अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था । और आखिकार अगले दिन कशिश ओर ऋषि लंच पर मिलने वाले थे । कशिश से पहले है ऋषि होटल मे वेट कर रहा था । जैसे ही कशिश आई जेंटलमेन बेहवियर से कशिश को सीट दी ।
कशिश ने थोड़ी देर चुप रहने की बाद ऋषि से कहा मैं तुम्हे कुछ बहुत इंपोर्टेंट बताने जा रही हूं ध्यान से सुनना ओर किसी से नहीं शेयर करना । ऋषि भी सब serious हो चुका था । कशिश ने उसे 1 1 करके सारी बाते बता दी ओर ऋषि हक्का बकका कशिश को देख रहा था । हैरानी से कशिश को कहा तुम ये सब कर रही हो भाई को बिना बताए । वैसे तो भैया भैया कहते नहीं थकती ओर अब इतना बड़ा मेटर छुपा रही हो । कशिश ने उसको समझाया ओर कहा की वो नहीं चाहती भाई या पापा परेशान हो पर उसका ये जानना भी जरूरी है कि किस को मेरे परिवार के साथ दुश्मनी है किसकी वजह से कशिश की मा की जान गई । क्या ये उसका हक नहीं है आखिकार ऋषि भी उसके प्लान मे शामिल हो गया ओर साथ देने को भी तैयार हो गया ।
ऋषि को इस बात की भी तस्सली थी कि कम से कम वो कशिश के साथ होगा । क्यूंकि ऋषि भी साथ जाने को तैयार हो गया ।
ऋषि को खुशी हो रही थी पर दिल बेचैन भी था क्यूंकि इतने दिनों बाद कशिश ने अपनी चूपी तोड़ी वो भी ऐसे । वो डर रहा था कि कहीं किसी के कारण कशिश को चोट ना पहुंच जाए पर डरते डरते कशिश ओर उसकी टिकिट बुक करवा ली 2 दिनों बाद की ।
और उधर कशिश को इस बात को लेकर सुकून था कि कम से कम एक काम तो निपटा ओर उसके मंजिल का पहले कदम पार कर लिया ।
अब बाते ओर उलझने वाली थी जिसका अंदाजा तो नहीं था पर जिसका प्रभाव कशिश को ये कदम पूरा करने से पहले दिखने को मिलने वाला था ।
कशिश बस अपने पापा के पास गई उनको काफी देर तक निहारती रही ओर अपने दिल की सारी बात कह डाली । ओर बस अपने इस काम को पूरा करने की हिम्मत ओर आशीर्वाद ले रही थी ।
कहानी की शुरुआत में अंत का क्या पता होता है । इसका कशिश ने ध्यान ही नहीं दिया । अपने कमरे में जाकर बस खिड़की से चांद को निहारते निहारते नींदों में गुम हो गई ।