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उनकी गाड़ी को पेड़ उठा उठा कर इधर उधर फेंक रहे थे। वे गाड़ी के अंदर बैठे चिल्ला रहे थे। उनके चिल्लाने की आवाजों के साथ साथ जंगल में डरावनी हंसी की आवाजें भी गूंज रही थी।
अब आगे:
यह सिलसिला अब बढ़ने लगा। जंगल में आवाजें भयानक होने लगी और पहले से कहीं ज्यादा गूंजने लगी। धीरे धीरे करके एक एक पेड़ हरकत में आता जा रहा था। ऐसा लग रहा था मानो पेड़ कोई खेल खेल रहे हों जिसमें वे इनकी कार को गेंद समझ के एक दूसरे की तरफ फेंक रहें हों।
अगर मैनें ऐसा दृश्य किसी कार्टून फिल्म में देखा होता तो मैं शायद हंस हंस के लोटपोट हो जाता। पर यह वास्तव में एक घने काले जंगल में बहुत ही गहरे अंधेरे में हो रहा था। इनमें से किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए।
सब पेड़ मस्ती से खेल का आंनद ले रहे हैं तो वहीं कार के अंदर बैठे सब लोगों की हालत खराब हो रही है। नंदू की तो पेंट गीली हो चुकी थी। यश बेहोश था। सागर और आरव तो बाहर देखने तक से भी घबरा रहे थे।
एक पेड़ ने उनकी कार को काफी ऊंचा उछाल दिया तो दूसरे पेड़ ने उछल कर कार को पकड़ लिया। कभी कोई पेड़ किसी भी एक पेड़ को कार आराम से पकड़ा रहा है, तो कभी बहुत जोर से फेंक के दे रहे हैं। कार के साइड मिरर हैडलाइट वगेरह टूटना तो लाजमी ही था।
बहुत देर तक ऐसे ही खेलने के बाद सब पेड़ एक एक करके अपनी जगह स्थिर हो रहे थे। इतनी देर ऐसे हरकत करने वाले अब हिल तक भी नहीं रहे थे। आखिर में एक पेड़ ने कार को गिरा दिया और वह खुद भी जड़ हो गया। कार नीचे गिरते ही कार के कांच टूट कर बिखर गए। अंदर बैठे सभी को बहुत तेज झटका लगा और कुछ चोटें भी आईं। पर ये चोटें दर्द के बजाय राहत दे रही थी। राहत इस बात की थी कि काफी देर इधर उधर पेड़ों की मार खाने के बाद आखिर जमीन पर आ चुके थे।
पर क्या सब कुछ सामान्य है? क्या सब लोग ठीक हैं? सब लोग एक दूसरे को संभालने लगे। यश बेहोश पड़ा था। सब यश को हिला हिला कर जगाने लगे। वे यह सुनिश्चित करना चाह रहे थे कि वह सलामत है। उन्होंने उस पर पानी छिड़ककर उसे उठाने की कोशिश भी की। पर वह तो जैसे बहुत गहरी नींद में सो रहा हो।
“हमें यश को बहुत जल्दी हॉस्पिटल लेकर जाना होगा।” आरव बोला।
“हां, पर जाएं कैसे?” सागर बोला।
“कोशिश करने में क्या लग रहा है अपना। पहले से भी कोशिश तो कर ही रहे हैं।” आरव बोला।
“हां ये भी ठीक है।” सागर बोला।
“देखो छह बज गए हैं। पर अभी भी घना अंधेरा ही है। सूरज के दिखने तक का नाम नहीं।” नंदू बोला।
“यार क्या इस जंगल में सुबह भी नहीं होगी?” सागर बोला।
“मुझे तो बहुत डर लग रहा है।” आरव बोला।
इस विचार ने कि सुबह होगी या नहीं, एक बार के लिए सभी को गहरे चिंतन में डाल दिया। पर आरव के दिमाग में यही चल रहा था कि सुबह होने का इंतज़ार करने के चक्कर में कहीं यश को खोना ना पड़ जाए। इसलिए वह कार स्टार्ट करने लगा। पर कार स्टार्ट नहीं हुई।
“लो फिर किसी भूत ने हमारी कार बंद कर दी।” सागर बोला।
“चल बाहर, कार को स्टार्ट करने की कोशिश करते हैं।” आरव बोला।
“पागल है क्या? मैं नहीं आने वाला कार से बाहर। तू भी कार में बैठा रह। हो सकता है थोड़ी देर में सुबह हो जाए। और फिर हम सब बच जाएंगे।” सागर बोला।
“कितने आराम से बोल दिया ना। और यश को कुछ हो गया तो?” आरव बोला।
“कुछ नहीं होगा उसको।” सागर ने जवाब दिया।
“आरव, मुझे लग रहा है सागर ठीक कह रहा है।” नंदू बोला।
“ऐसे ही हम रूही को खो चुके हैं। सिर्फ उम्मीदों के सहारे। बस अब और नहीं, अगर मरना है तो सब मरेंगे। वरना यश को भी बचाएंगे।” आरव बोला।
“चल ठीक है, जैसा तुझे ठीक लगे।” सागर बोला।
आरव और सागर गाड़ी से जैसे ही उतरे, एक अजीब सा जानवर उनके पास आ गया और उन्हें डराने लगा। देखने में वह कुत्ते के जैसा लग रहा था, पर कुत्ते से कहीं भयानक। उसका पूरा शरीर आग से जल रहा था।
उसको देखते ही सागर फुर्ती से कार में बैठ गया। पर आरव में ना जाने कहां से हिम्मत आ रही थी। वह गाड़ी की बैटरी चेक करने लगा। उसे फर्क भी नहीं पड़ रहा था कि कोई जानवर उसके आस पास घूम रहा है। इतने में उस जानवर ने आरव पर हमला कर दिया।
कहानी जारी रहेगी…
पेड़ों से छुटकारा मिला तो ये नई मुसीबत आ गई। क्या आरव इस जानवर से बच पाएगा? या कुछ नया रहस्य आयेगा इस कहानी में। जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले पार्ट का और तब तक अपने दोस्तों को भी शेयर कीजिए ये कहानी।
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