अब तक आपने पढ़ा:
आरव को ढूंढते समय सागर की आंख लग गई। यश गाड़ी की जगह पहुंचा तो वहां गाड़ी नहीं थी। इसी चक्कर में यश और सागर आपस में बिछड़ गए थे।
अब आगे:
कुछ देर में सागर की आंख खुली तो उसने टाइम देखा और गाड़ी की तरफ भागा। जब वह भागता भागता उस जगह पर पहुंचा जहां उन्होंने गाड़ी खड़ी की थी, तो वहां ना तो यश था और ना ही गाड़ी।
“कहीं यश तो गाड़ी नहीं ले गया? पर चाबी तो मेरे पास है, वो कैसे ले जा सकता है।” सागर अपने आप से ही बोल रहा था और बोलते बोलते वह इस निश्चय पर पहुंचा कि हो न हो दाल में जरूर कुछ काला है। वह यश को ढूंढने के लिए इधर उधर दौड़ने लगा। “यश, यश” वह चिल्ला रहा था और उसको ढूंढ रहा था। सागर की आंखों से भी आंसू निकल आए थे।
अब वे तीनों आपस में बिछड़ चुके थे। और किसी को भी एक दूसरे के बारे में कुछ नहीं पता। और आरव, उस बेचारे को तो ये भी नहीं पता की रूही भूत है। शायद उसको ये भी ना पता हो कि उसके साथी जिंदा हैं।
एक अनजान जगह पर आरव की आंख खुलती है। आरव के आस पास घना अंधेरा है। वह धीरे धीरे बड़ी मुश्किल से बैठ जाता है और याद करने की कोशिश करता है की आखिरी वक्त पर क्या हुआ था। कुछ अधूरे से दृश्य उसके दिमाग में घूमने लगते हैं। उसे याद आता है कि एक अजीब से जानवर के द्वारा उन पर हमला होता है। फिर सागर गाड़ी चला रहा था। तेज बारिश से बचने के लिए उसने खुद को और यश को ढका था। उसके आगे का उसे कुछ भी याद नहीं।
वह उठा और चिल्लाया, “सागर, यश।” उसने चारों तरफ के वातावरण का जायजा लिया। आस पास बहुत से पेड़ थे पर आश्चर्य किसी भी पेड़ पर एक भी पत्ता नहीं था। वह फिर चिल्लाया, “कोई है यहां? जो मुझे सुन सकता है!” शांत माहौल में उसकी आवाज बहुत तेज गूंजी। पर अफसोस उसकी आवाज का कोई जवाब लौटकर नहीं आया।
उधर, यश बैठा गुम हो जाने के गम में रो रहा था तो सागर भी निराश हुआ उसे ढूंढने की भरपूर कोशिश कर रहा था। मगर इस तिलस्मी जंगल ने अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया था। जंगल के हिस्सों का रूप बदल रहा था और इतनी चालाकी से बदल रहा था कि दोनों में से किसी को भनक तक भी नहीं लगी।
वह जंगल सागर को यश से दूर ले जा रहा था। यश ने थोड़ी हिम्मत जुटाई और सोचा कि बैठे रहने से अच्छा है कि सागर को ढूंढा जाए। वह उठा और सागर को आवाज देता हुआ चल दिया। सागर और यश दोनों एक दूसरे के विपरीत दिशा में चल रहे थे।
आरव के पास एक आवाज आई, “मैं हूं यहां, तुम्हारे लिए।” बहुत ही कोमल आवाज, और इतना धीमा स्वर मानो कोई आरव के कान में ही बोल गया हो। “कौन?” आरव ने पूछा। आरव का पूछना था कि किसी कोमल हाथों ने उसकी आंखो को ढक लिया। आरव ने बड़ी सख्ती से उन हाथों को हटाया और पीछे मुड़कर देखा।
सागर को एक जगह आरव की अंगूठी दिखाई दी। और सागर को याद आया कि यह वही अंगूठी थी जिसको देखकर आरव ने उस जगह की पहचान की थी और बाद में उसने वह अंगूठी अपनी अंगूठी में डाल ली थी। उसे याद आया कि आरव बता रहा था कि उसकी अंगूठी बहुत ढीली है और जगह जगह गिर जाती है। हो न हो आरव यहीं आस पास ही होगा। उसे ऐसा पूरा यकीन था। वह “आरव, आरव….” चिल्लाता आरव को तो कभी “यश, यश” चिल्लाता यश को ढूंढने की कोशिश कर रहा था। उसके कानों में एक बहुत भारी आवाज पड़ी, “अगर तुमसे कहा जाए कि तुम अपने दोस्तों में से किसी एक से मिल पाओगे, तो तुम किस से मिलना चाहोगे?”
आरव के सामने रूही खड़ी थी। आरव को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या रिएक्ट करे। वह खुशी के मारे रो पड़ा और रूही को गले लगाते हुए बोला, “रूही, तुम सच में, मेरे सामने। तुम ठीक हो? तुम जिंदा हो। पता है हमें लगा तुम.. छी, कितने गंदे विचार आते हैं ना हमारे मन में। पर वो लाश? शायद किसी भूत की चाल होगी।”
सागर के पास उस आवाज का कोई जवाब नहीं था। वह बस इतना बोला, “तुम कौन होते हो यह डिसाइड करने वाले कि मैं केवल एक से ही मिल पाऊंगा। मैं तो दोनों से मिलूंगा।”
“मूर्ख, यहां जो कुछ भी हो रहा है, वो सब मेरी ही मर्जी से हो रहा है। जानना चाहोगे कौन हूं मैं?”
कहानी जारी रहेगी…
दोस्तों क्या ये लोग आपस में मिल पाएंगे? क्या आरव रूही की असलियत जान पाएगा? आरव की कार कहां गई? कहीं रूही आरव को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाने वाली? सागर से कौन बात कर रहा है? सवाल बहुत से हैं पर हर “रहस्य” पर से पर्दा उठेगा अगले पार्ट्स में। तो इंतजार कीजिए और जितना ज्यादा शेयर करोगे, अगला चैप्टर उतना जल्दी आएगा।
Please bookmark this “web novel” and stay tuned to read next part👍