अब तक आपने पढ़ा:
घनश्याम निराश होकर घर लौटा और प्रीति ने उसको हाथ मुंह धोकर खाना खाने के लिए कहा।
अब आगे:
“ओके” कहकर घनश्याम हाथ मुंह धोने लग गया।
घनश्याम हाथ मुंह धोकर बाहर आया तभी उसकी मां, जो अपने कमरे में सो रही थी, बाहर आई। बाहर आते उन्होंने घनश्याम को देखा और देखती ही बोली, “घनश्याम बेटा, तुम इस वक्त घर पर, सब ठीक तो है ना!”
“मुझे जॉब से निकाल दिया।” घनश्याम ने जवाब दिया।
प्रीति ने मां को इशारा कर दिया कि भैया का मूड थोड़ा खराब है, बाद में इस मैटर पर बात करेंगे।
“अच्छा बेटा, कोई बात नहीं, कोई और जॉब मिल जाएगी। तुम थोड़ी हिम्मत रखना बस।” कहकर मां अपने काम लग गई।
घनश्याम भी खाना खाकर सो गया। शाम को वह रोहन के घर गया। पर वहां ताला लगा था तो वह जॉब के लिए कोई अच्छी जगह ढूंढने लगा। उसने पिछले महीने के सारे अखबार इकट्ठे कर लिए और सभी अच्छी जॉब ऐडवर्टाइजमेंट को अलग कर लिया।
फिर वह सब जगह पर एक एक करके कॉल करने लगा। इसी तरह से दिन निकलने लगे। वह रोज अलग अलग जगह जॉब के लिए ट्राई करता। इंटरव्यू का दौर फिर से शुरू हो गया। कभी कहीं तो कभी कहीं उसने जॉब के लिए इंटरव्यू देने जाना ही होता था।
अगर आप एक मिडल क्लास फैमिली से हैं तो आप घनश्याम की स्थिति को भलीभांति समझ सकते हैं। घनश्याम इतनी कम उम्र में इतने बड़े दौर से गुजर रहा था। पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी। परिवार का कोई सदस्य जता नहीं रहा था पर अब घर चलाने के लिए आखिरी उम्मीद सबको घनश्याम ही लग रहा था। घनश्याम भी इस बात से अछूता नहीं था। भले ही उसकी उम्र कम हो पर वह बच्चा नहीं था। वह इन सब बातों को अच्छी तरह समझता था। इसलिए ही तो वह जॉब के लिए परेशान रहता था।
एक दिन घनश्याम की एक कंपनी में जॉब लग गई। दो महीने घर में बेरोजगार बैठने के बाद आखिर उसको रोजगार मिल ही गया। पर यह कहानी का अंत नहीं है। घनश्याम के भाग्य में ना जाने क्या लिखा था, कोई नौकरी उसके पास जैसे टिकना ही नहीं चाहती हो। इस बार उसके ऑफिस में आग लग गई और कंपनी घाटे में चली गई, जिसके चलते उन्हें कुछ लोगों को काम से निकालना पड़ा, क्यूंकि उनके पास सैलरी देने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे।
घनश्याम की लाइफ में फिर से निराशा का एक दौर शुरू हो गया। अब तक घनश्याम की डिग्री भी पूरी हो चुकी थी तो उसे अब उम्मीद थी कि जरूर कोई अच्छी जॉब मिल जाएगी और उसकी लाइफ सेट हो जाएगी।
इसलिए उसने फिर से कोशिश का एक दौर शुरू कर दिया। पर उसके हाथ केवल निराशा ही लग रही थी। एक दिन वह रोहन से बोला, “यार रोहन, अब तो मेरे पास डिग्री भी है, कहां गई वो कंपनियां जिन्होंने मुझे पहले सिर्फ डिग्री ना होने की वजह से रिजेक्ट किया था।”
“देखो घनश्याम, मैं तुम्हारी हालत समझ सकता हूं। मुझे पता है तुम इस वक्त बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहे हो। तुम फिक्र मत करो, अब तो तुम्हारे पास डिग्री भी है, जरूर तुम्हें कोई अच्छी जॉब मिलेगी वो भी अच्छी सैलरी के साथ।” रोहन बोला।
“उम्मीद तो मुझे भी है, पर देखो क्या लिखा है किस्मत में।” घनश्याम बोला।
“क्यूं ना कोई बिज़नेस ही कर लो।” रोहन बोला।
“तुम फिर शुरू हो गए।” घनश्याम बोला।
“अच्छा सॉरी यार, अब नहीं बोलूंगा।” रोहन बोला।
“जल्दी ही कोई जॉब मिल जाए तो अच्छा है, वरना खाने के भी लाले पड़ जाएंगे।” घनश्याम बोला।
“सब अच्छा है होगा, तुम फिक्र ना करो।” रोहन बोला।
“हां पर घर में जो भी जमा पूंजी थी, सब खत्म होने के कगार पर है।” घनश्याम बोला।
“तुम फिक्र मत करो दोस्त, कुछ जरूरत हो तो मुझे बोलना।” रोहन बोला।
“हां ज़रूर।” घनश्याम बोला।
इसी तरह दोनों आपस में बातें करते रहे। घनश्याम जब भी रोहन से बात करता तो उसका मन हलका हो जाता। यही तो खूबसूरती है दोस्ती की। कभी कभी मैं सोचा करता हूं, अगर ये दोस्ती ना होती तो सब कैसा होता। अगर ऐसा होता तो शायद इन्सान किसी मशीन की तरह होता। क्यूंकि अगर दोस्ती ही ना होती तो किसी से कोई हमदर्दी या शिकायत ही नहीं होती, खैर छोड़ो ये सब बातें।
घनश्याम की हालत इस वक्त वाकई खराब होने लगी थी। उसके पास अब तक कुछ धन था, पर आने वाले समय के लिए ना तो उसके पास कोई जॉब है और ना ही कुछ खास जमा पूंजी। उसे खुद की कोई फिक्र नहीं थी, बस इस बात का डर था कि वह उसके परिवार को एक बेहतर जिंदगी नहीं दे पाएगा।
कहानी जारी रहेगी…
दोस्तों कहानी थोड़ी सीरियस टाइप की हो रही है, पर आगे काफी इंटरेस्ट आने वाला है। तो बने रहिए मेरे साथ, और इंतजार कीजिए अगले पार्ट का।
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