अब तक आपने पढ़ा:
आरव और यश को वैकेशन ट्रिप की पर्मिशन मिल चुकी थी जबकि सागर के इस मामले पर बात करने से पहले ही उसे खूब डांट पड़ी और वह छत पर चला गया।
अब आगे:
छत पर आते ही उसकी नजर हमेशा की तरह सबसे पहले पास वाली छत पर गई जहां रूही पहले से ही कपड़े सूखा रही है।
रूही, आरव, यश और सागर, ये चारों एक ही क्लास में पढ़ते हैं। सागर और यश में हमेशा होड़ लगी रहती थी रूही को इंप्रेस करने के लिए और रूही पसंद करती थी आरव को। आरव रूही को बिल्कुल भी भाव नहीं देता था। अभी कुछ देर पहले नीचे जिस चिंटू को लेकर इतना घमासान घर में हुआ था, वह चिंटू रूही का भाई है।
कुछ देर तक सागर रूही को देखता रहा। अचानक रूही ने पलटकर देखा तो सागर ने नजरें घुमा ली।
“मुझे पता है तुम मुझे ही देख रहे हो।” वह बोली।
“सॉरी” सागर बोला।
“अच्छा अच्छा ठीक है। तुम लोगों का वैकेशन का क्या प्लान है?” रूही ने पूछा।
“प्लान कर रहे हैं कहीं घूमने जाने का। वैसे तुम्हारा क्या प्लान है?” सागर बोला।
“कुछ भी नहीं।” वह मायूस होकर बोली और फिर थोड़ा सोचकर बोली, “कहां घूमने जा रहे हो?”
“गोवा” सागर ने जवाब दिया।
“इतनी दूर! वैसे कौन कौन जा रहे हो?” रूही ने पूछा।
“मैं, यश और आरव।”
“अच्छा, क्या मैं भी चल सकती हूं तुम लोगों के साथ?”
“क्या… तुम!! नहीं.. मेरा मतलब कैसे?”
“क्या हुआ? इतना क्यों हकला रहे हो? मैं घर पर एडजस्ट कर लूंगी। तुम्हारा बिल्कुल भी पता नहीं लगेगा।”
“ओह फिर ठीक है। पर फिर भी एक प्रॉब्लम है।”
“क्या?”
“आरव!”
“आरव?”
“हां, वो नहीं मानेगा।”
“पर क्यूं?”
“पता नहीं उसको क्या प्रॉब्लम है तुमसे! पर मैं यकीन से बोल सकता हूं कि वो बिल्कुल भी नहीं मानेगा।”
“अच्छा फोन लगाओ उसको। देखते हैं क्या बोलता है।”
“हां ज़रूर!” बोलकर सागर ने आरव को फोन लगाया।
सागर और रूही के घर की छतें आपस में सटी हुई थी। बातें करते करते ना जाने कब सागर और रूही एक दूसरे के पास आ गए थे। अब उनके बीच सिर्फ एक छोटी सी दीवार ही थी। रूही ने सागर को फोन स्पीकर पर रखने के लिए बोला सागर ने फोन स्पीकर पर किया तभी आरव ने फोन उठा लिया।
“हां सागर! बोलो पर्मिशन मिल गई ना?” आरव फोन उठाते ही बोला।
“नहीं यार अभी तक तो!” सागर बोला।
“तो जल्दी मांग ले ना। अपने को अभी उसके बाद पूरा प्लान भी बताना है घर पर और..” आरव बोल रहा था कि बीच में सागर बोला, “हां, पता है मुझे बो सब! तू ये बता कि अपने साथ कोई और भी चल सकता है क्या?”
“कौन?” आरव ने पूछा।
“है कोई फ्रेंड” सागर ने बोला।
“अगर बताएगा कौन है तो सोचेंगे।” आरव बोला।
“रूही है।” सागर बोला।
“कौन रूही? वो अपनी क्लासमेट?” आरव बोला।
“हां वही। अब बता चल सकती है क्या?” सागर ने फिर पूछा।
“नहीं” आरव बोला।
“पर क्यूं?” बीच में रूही बोली।
इस पर आरव ने फोन काट दिया। रूही सागर से बोली, “मुझे आरव का नंबर दो, मैं समझा लूंगी उसको कैसे भी। तुम अपनी तैयारी करो।”
सागर ने रूही को आरव का नंबर दिया। इतने में रूही को उसकी मम्मी ने आवाज लगाई और वह चली गई।
आरव अपने बेड पर सो रहा था कि अचानक उसने आस पास देखा तो कमरे में आग लग रही थी। वह मदद के लिए चिल्लाने लगा। पर कोई उसकी आवाज नहीं सुन रहा था। उसे डर लगने लगा कि कहीं उसके मम्मी पापा को कुछ नुकसान तो नहीं हुआ होगा और साथ ही आग भी धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी तो बाहर निकलना भी जरूरी था। जैसे ही वह अपने रूम से बाहर आता है तो वह देखता है कि यहां तो ऐसा कुछ भी नहीं है। वह देखता है कि उसकी मां किचन में काम कर रही थी। वह जाता है और अपनी मां को देखते ही गले लगा लिया है। गले लगाते ही उसकी मां एक प्लास्टिक की गुड़िया में बदल जाती है। इतना सब देखने के बाद तो आरव की हवा टाइट हो गई। डर के मारे वह हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा। जैसे तैसे हिम्मत करके उसने उस गुड़िया को दूर फेंका और घर से बाहर की तरफ भागने की कोशिश करने लगा। जैसे ही वह दरवाजे के पास गया दरवाजा अपने आप बन्द हो गया। फिर एक एक करके घर के सारे खिड़की दरवाजे बंद होने लगे। आरव का डर के मारे इतना बुरा हाल हो गया कि उसके मुंह से चीख तक भी नहीं निकल पा रही थी। उसके बुरी तरह पसीने छूटने लगे। वह घर में एक कोने में सिमटकर बैठ गया। अब उसका दिमाग भी काम करना लगभग बंद कर चुका था। उसे नहीं पता था कि इस सिचुएशन में क्या करे और क्या नहीं।
कहानी जारी रहेगी…
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