अब तक आपने पढ़ा:
घनश्याम के मन में सुसाइड के विचार आने लगे थे जिसको सुनकर रोहन भी परेशान हो गया।
अब आगे:
“ऐसा वैसा मत सोचो।” रोहन बोला।
“तो क्या करूं, तुम ही बता दो, काम मेरे पास कोई है नहीं, जरूरतें बहुत हैं।” घनश्याम बोला।
रोहन निरुत्तर था। देता भी तो क्या जवाब देता। अपने दोस्त की इस हालत को देखकर वह बहुत परेशान हो गया, पर इस परेशानी का उसके पास कोई हल नहीं था।
“घर चलें।” रोहन बोला।
“हां चलो।” घनश्याम ने जवाब दिया। दोनों अपने अपने घर आ गए।
घनश्याम ने घर आने के बाद हिसाब लगाया कि उसके पास सिर्फ दस हजार रूपए हैं जिससे घर का खर्च मुश्किल से एक महीना चल सकता है। मतलब उसे इस महीने में कोई ना कोई जॉब अवश्य ही ढूंढनी होगी। घनश्याम कुछ सोच रहा था कि तभी प्रीति उसके कमरे में आई।
“क्या कर रहे हो भैया?” प्रीति ने पूछा।
“कुछ नहीं।” घनश्याम ने जवाब दिया।
“अच्छा मेरा एक काम करोगे?” प्रीति बोली।
“कैसा काम?” घनश्याम ने पूछा।
“मुझे एक नोटबुक चाहिए। ला दोगे प्लीज़?” प्रीति ने कहा।
“हां ठीक है थोड़ी देर बाद ला दूंगा।” घनश्याम बोला।
“नहीं, मुझे अभी चाहिए।” प्रीति बोली।
“ठीक है, ले आता हूं।” घनश्याम बोला।
इसके बाद घनश्याम एक दुकान पर नोटबुक लेने के लिए चला गया।
“भैया एक नोटबुक देना।” घनश्याम ने दुकानदार से कहा।
दुकानदार ने घनश्याम को चार-पांच नोटबुक दिखाई जिसमें से उसने एक नोटबुक उठाते हुए पूछा, “ये वाली कितने की है?”
“80 रुपए की भैया।” दुकानदार बोला।
“इतनी महंगी!” घनश्याम चौंकते हुए बोला।
“एकदम सही दाम है, लेनी है तो लो।” दुकानदार बोला।
“अच्छा ठीक है, एक दे दो।” घनश्याम बोला।
घनश्याम ने नोटबुक ली और घर आ गया। घर आकर उसने प्रीति को नोटबुक दे दी और अपने कमरे में आकर बैठ गया।
ऐसे ही पंद्रह बीस दिन और निकल गए और घनश्याम के पास काम का कोई ठिकाना नहीं था। ऐसे में वह एक दिन डिप्रेस होकर सुसाइड करने की सोचने लगा। उसके मन में बुरे बुरे ख्याल आने लगे। वह डिप्रेशन की पराकाष्ठा पर इस कद्र पहुंच गया था कि उसे आत्महत्या करना बिल्कुल सही और एकमात्र विकल्प नजर आ रहा था।
इसलिए वह घर पर बिना किसी को कुछ बताए चुपचाप कहीं निकल गया। उसने तो मानो सुसाइड करने का पूरा ब्लूप्रिंट तैयार कर रखा हो। वह किसी रास्ते पर चलता जा रहा था जो किसी सुनसान इलाके की तरफ जा रहा था और उस रास्ते पर रेलवे ट्रैक भी आता था जहां मुश्किल से कोई आदमी मिलता हो। घनश्याम उस तरफ शायद इसलिए जा रहा था ताकि कोई उसे बचाने की कोशिश ना कर पाए।
घनश्याम को चलते हुए सड़क पर एक सफेद रंग का लिफाफा पड़ा हुआ दिखा। उसने आस पास ढूंढा, पर ढूंढने पर भी उसे वहां कोई आदमी दिखाई नहीं दिया। उसने लिफाफे को उठाया और खोलकर देखा। लिफाफे को देखकर वह हैरान रह गया। उसे अपनी आंखों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था। वह उस लिफाफे को एकटक देखे जा रहा था और उसकी मग्न अवस्था में विघ्न डालने के लिए कोई प्राणी आस पास नहीं था।
आखिर ऐसा क्या है लिफाफे में जिसको देखकर घनश्याम स्तब्ध रह गया। दरअसल लिफाफे में कुछ कड़क नोट हैं, कोई पांच सौ का तो कोई दो हजार का।
कुल कितने रुपए होंगे? किसके होंगे? यहां कैसे आए? शायद गलती से गिर गए होंगे। क्या हुआ होगा? इस तरह के विचारों के बीच घनश्याम उलझ चुका था। वह यह बात भी भूल चुका था कि वह तो सुसाइड करने जा रहा था।
घनश्याम के मन में उत्कंठा हो रही थी कि आखिर कुल कितने रुपए होंगे? इसलिए वह जल्दी से उन नोटों की गिनती करने लगा। एक, दो, तीन.. करते हुए उसने गिनती पूरी की। लिफाफे में कुल पचास हज़ार रुपए थे।
घनश्याम को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह इस लिफाफे को अपने पास रखे या वहीं छोड़ दे? क्या उसे इन रुपयों को खुद के काम में लेने चाहिए क्यूंकि उसे जिंदगी के इस दौर में रुपयों की सख्त जरूरत है। अगर वह इन रुपयों को यहीं छोड़ देता है तो कोई और उठा कर ले जाएगा। और यदि वह इसे इसके असली मालिक को देना चाहता है तो वह उसे ढूंढेगा कैसे? कुछ इस तरह की उधेड़बुन में फस गया था हमारा घनश्याम। अगर आप घनश्याम की जगह होते तो क्या निर्णय लेते? कमेंट लिखकर जरूर बताएं।
बहुत देर सोचने के बाद घनश्याम को एक विचार आया। वह खुद पर आश्चर्य महसूस कर रहा था कि इस तरह का विचार आखिर उसके दिमाग में आया कैसे?
कहानी जारी रहेगी…
दोस्तों, कहानी में कैसे अजीब अजीब से मोड़ आ रहे हैं? चलो शुक्र है कम से कम घनश्याम सुसाइड करने से तो बच गया। पर उसकी बेरोजगारी अब भी जारी है। क्या लगता है, क्या होगा घनश्याम की बेरोजगारी का? जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले पार्ट का।
अगर आपने मेरी पिछली कहानी “Crime Partner” (Hindi) अब तक नहीं पढ़ी तो जल्दी जाकर पढ़िए CrazyWordSmith.com पर।
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