कशिश की जिंदगी में एक रोशनी इसी के रूप में आ गई थी पर अब उस पर विपदा और दुखों के गहरे बादल जाने वाले थे जो इस रोशनी से शायद बहुत बड़े थे पर कशिश इनसे बिल्कुल अनजान थी बिल्कुल बेखौफ…..
बीती बातों से उबर कर कशिश अपने काम में मन में हो गई थी रोज वह ऑफिस जाने से पहले मिस्टर अरोड़ा से बातें करते उनसे जिंदगी के अनुभव और अपनी जिंदगी के बारे में बातें उनसे सांझा करती थी कशिश को यह बहुत अच्छा लगता था
उधर अर्जुन और रिचा भी एक दूसरे के साथ काफी खुश थे हां जरूर कभी-कभी उन दोनों के बीच छोटी मोटी लड़ाई हो जाती थी जिन्हें कशिश बड़े ही प्यार से समझा कर दूर कर देती थी
कशिश की जिंदगी बिल्कुल शांत चल रही थी परंतु यह शांति आने वाली सुनामी की निशानी थी पर ना तो कशिश को और ना ही अरोड़ा फैमिली के किसी भी सदस्य को इसकी भनक थी हर कोई अपनी जिंदगी अच्छे से जी रहा था कशिश ने अब अपना ऑफिस का असाइनमेंट पूरा कर लिया था उसकी वजह से कंपनी में काफी ग्रोथ हो रही थी बॉस और कंपनी के सारे लोग कशिश के व्यवहार और काम की वजह से कशिश को बहुत पसंद करते थे
थोड़े ही दिनों में एक छोटी सी कंपनी कि इतनी ग्रोथ बड़ी-बड़ी कंपनियों को भी नहीं समझ आ रही थी
कशिश की प्रमोशन हो चुकी थी कशिश की वर्किंग लाइफ के साथ-साथ पर्सनल लाइफ में उम्दा चल रही थी ऋषि और कशिश एक दूसरे के साथ बहुत खुश थे वह दिन में एक ने एक बार तो जरूर मिलने की कोशिश करते थे कशिश और ऋषि की जिंदगी की तरह ही अर्जुन और रिचा की जिंदगी चल रही थी
मिस्टर अरोड़ा भी अपने बच्चों को इस तरह खुश देख कर वह भी बीते सदमे से बाहर आ रहे थे
सब कुछ अच्छा चल रहा था मानो ऐसा लग रहा था कि मिस अरोड़ा ऊपर से बैठकर भगवान से इन्हीं के लिए ही कामना करती रहती हो हां कशिश उनसे अंतिम बार नहीं मिल पाई थी इसी वजह से वह थोड़ी दुखी थी
ऋषि अब कहीं ना कहीं मिस अरोड़ा की कमी को कम करने की कोशिश करता था परंतु आखिर मां की कमी कौन पूरी कर पाता है….
अचानक एक दिन कशिश के पास एक फोन आया वह धम्म से कुर्सी पर गिर गई और बस सामने वाले की बातें सुन रही थी उसे पता ही नहीं चल रहा था कि वह इन बातों पर रिएक्ट कैसे करें बस सुनती जा रही थी और विपदा के बादल उसकी तरफ धीरे-धीरे बड़े चले आ रहे थे कशिश बेजान सी बस सामने वाले की बातें सुन रही थी …..
बस सुन रही थी…….